Monday, June 16, 2025

तुमनें क्यों जाते हुए पलट के देखा मुझको

अंदर से नहीं बस बाहर से देखा मुझको 

सब ने अपने अपने चश्में से देखा मुझको 


आख़िर उम्र भर का इंतज़ार जाया न गया 

उसने जनाज़े को रुकवा के देखा मुझको 


तुम जा रहे थे, चले जाते, कोई ग़म ना था 

तुमनें क्यूँ जाते हुए पलट के देखा मुझको 


अच्छा ! वो पहली नज़र का इश्क़ नहीं था 

तो फिर क्यों इतने प्यार से देखा मुझको ।

लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

ज़िंदा तो हूँ

तुझसे बिछड़ कर भी आख़िर मैं, ज़िंदा तो हूँ 

तुझसा ख़ुश तो नहीं हूँ चाहे, ज़िंदा तो हूँ 


तेरा ग़म भी तेरे वादे जैसा कच्चा निकला 

जान नहीं ले पाया मेरी ये, ज़िंदा तो हूँ ।


तेरी माँग को जो बे-सिंदूर देखा उस दिन 

चिकोटी काट के देखा मैंने ज़िंदा तो हूँ 


शुक्र है तेरे कातिल हुस्न को पर्दे में देखा

इनायत है की दीवाना सही मैं ज़िंदा तो हूँ 

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Thursday, June 5, 2025

इश्क़ किया है

ख़ुद पे ही सितम किया इश्क़ किया है

जानते हुए ज़हर पिया इश्क़ किया है


वो डिग्रियाँ गिना रहा था तो मैनें पूछ लिया

वो सब तो छोड़ो मियाँ इश्क़ किया है ?


इतनी बड़ी सजा और इस गुनाह की

कोई क़त्ल नहीं किया इश्क़ किया है


अच्छा तो प्यार के बदले प्यार चाहते हो

अमा कोई सौदा नहीं किया, इश्क़ किया है ।


अल्फ़ाज़ की जरूरत ही नहीं इस शह में

आँखों से होती है बयाँ, इश्क़ किया है

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Tuesday, May 13, 2025

ये जो सारे ख़त-ए-इज़हार रखे है तुमने 

मेरे जैसे कितने उम्मीदवार रखे है तुमने


ये मुस्कान ये काजल ये खुले बाल

क़त्ल के कितने हथियार रखे है तुमने


दो नावों पर सवार हो तो फिर भी ठीक

एक नाव पर कितने सवार रखे है तुमने


इश्क़ में एक-दो आशिक़ मरना आम बात है

पूरे पूरे क़बीले मार रखे है तुमने ।

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Saturday, April 26, 2025

सपने

मुझे लगता था 

की मेरे सपने भी तुम्हारे होंगे 

और जी जान से तुम 

मेरे सपने पूरे करने में 

अपनी ज़िन्दगी बिता दोगे । 

पर ऐसा होता नहीं, 

होना लाज़मी भी नहीं,

सपने तो अपने ही होते हैं 

और उनको पूरा करने का दारौमदार 

ख़ुद के ही काँधों पर होता है ।

                © लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

नामौजूदगी

तुम्हारी नामौजूदगी 

तुम्हारे होने की क़ीमत याद दिलाती है मुझे 

मैं वो दीया हूँ 

जो बिना बाती के रोशन हुआ चाहता है । 

पर उसको याद नहीं 

की वो बिनाई दीये की नहीं 

वो तो बाती और तेल की बदौलत 

रोशन होती है । 

ग़लतफ़हमी फिर ग़लतफ़हमी ही है 

चाहे वो कितनी भी ख़ुशफ़हमी के रूप में आए । 

बेहतर है समय रहते 

एहसास हो जाए हकीकत का 

और क़ीमत समझ लूँ मैं तुम्हारी ।

            © लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

तुमनें क्यों जाते हुए पलट के देखा मुझको

अंदर से नहीं बस बाहर से देखा मुझको  सब ने अपने अपने चश्में से देखा मुझको  आख़िर उम्र भर का इंतज़ार जाया न गया  उसने जनाज़े को रुकवा के देखा ...