FCI के सभी कार्मिकों एवं श्रमिकों को समर्पित एक कविता
लोकेश ब्रह्मभट्ट
मंडल प्रबंधक, FCI श्रीगंगानगर
जहाँ आज सारा मुल्क घरों में कैद है
और सारी दुनिया जय-जयकार कर रही है
डॉक्टरों और पुलिस जैसे कर्मवीरों की
और सारा देश मना रहा है लोकडाउन की अघोषित छुट्टियां
तब भी तुम उसी शिद्दत से जुटे हो अपने काम में
गुमनाम से गोदामों में, जान हथेली पर लिए
यही सोचकर कि
भूखे को निवाला देना
भला इससे भी जरूरी काम है कोई
ए मेरे खाद्य सुरक्षा के सैनिकों
मुझे मालूम है तुम्हारे दिल का हाल
जानता हूं उस दर्द को
जो बरसों से मन के एक कोने में दबाए रखा है तुमने
कि कोई नहीं देता तुम्हें वह दर्जा
जिसके तुम हकदार हो
पिछली आधी सदी से
कितना कुछ करते हो तुम इस देश के लिए
दिलो जान से, यही सोचकर कि
भूखे को निवाला देना
भला इससे भी जरूरी काम है कोई
हां पता है मुझे कि तुम भी
अपने परिवारों से दूर हो
अपने घर के चांद और तारों की फिक्र
तुम्हें भी सताती है
निकल गया है तुम्हारे घर की रौनक का
तीसरा या चौथा जन्मदिन इसी तालाबंदी में
और वह चांद सा चेहरा जो गांव से
रोज तुमसे वीडियो कॉल पर एक ही सवाल करता है
और तुम एक ही जवाब देते हो
अभी नहीं आ सकता, यहां बहुत जरूरी काम है
क्योंकि भूखे को निवाला देना
भला इससे भी जरूरी काम है कोई।
क्या हुआ जो कोई तुम्हें ना जाने
ना लगाए स्टेटस तुम्हारे सपोर्ट में
ना बदले तुम्हारे लिए कोई अपनी डीपी
ना बजाए तुम्हारे लिए कोई तालियां
ना जलाये तुम्हारे लिए कोई दिया या मोमबत्ती
तुम्हें तो फिर भी किये जाना है वही काम
क्योंकि, भूखे को निवाला देना
भला इससे भी जरूरी काम है कोई।
पर देखो इन बंद खिड़की दरवाजों के पार
उम्मीद की रोशनी की उस किरण को
जो रोशनदान से बाहर आने की कोशिश में है
वह किरण जो मिटाएगी इस अंधकार को
और एक नया और स्वस्थ सवेरा लाएगी
जिसमें नहीं होगा किसी बीमारी का डर
जीत लेगा यह देश इस जंग को
और जश्न होगा चहुँऔर हर शहर में
लोग कंधों पर बिठाए होंगे कर्मवीरों को
डॉक्टर नर्स और पुलिस को मिल रही होगी सलामियां
टीवी और अखबार भरे होंगे उनके जज्बे की कहानियों से
और तुम सब तब भी पर्दे के पीछे
उसी शिद्दत से लगे होंगे अपने काम में
यही सोचकर की भूख लॉकडाउन देखकर नहीं आती
और भूखे को निवाला देना
भला इससे भी जरूरी काम है कोई।
पर यह सब सोचकर निराश ना होना
क्योंकि कोई और माने या ना माने
मीडिया तुम्हारा महत्व पहचाने या ना पहचाने
तुम यह सोच कर संतोष कर लेना
इस देश के 80 करोड़ गरीब पेट पहचानते हैं तुम्हें
कि जब सारा देश घरों में सुरक्षित था
तो तुमने अपने कंधों पर उठाया था उनकी भूख का जिम्मा
निस्वार्थ समर्पण के साथ विषम हालातों में
भूल कर अपने और अपने परिवार के सब दुख दर्द
जान की बाजी लगाकर
पहुंचाया था सारे देश मे अनाज
क्योंकि, भूखे को निवाला देना
भला इससे भी जरूरी काम है कोई।