Tuesday, August 14, 2012

बस बहुत हुआ अब और नहीं...

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के वर्तमान हालात पर कुछ लिखने की इच्छा हुई .. पेश है ...

खाकर रिश्वत अरबो रूपये, घूम रहे है कुर्सीधारी,

कोर्ट सीबीआई फ़ैल हो गयी, हीरो बन गए भ्रष्टाचारी,
पाक साफ़ है नेता सारे, संसद में कोई चोर नहीं..
बस बहुत हुआ अब और नहीं...

विकास की आड में हमने जंगल काट दिए सारे, 

शेर तेंदुए भटक रहे है, बेघर हो गए सारे,
बाघ बचे बस पिंजरो में, और जंगल में कोई मोर नहीं,
बस बहुत हुआ अब और नहीं...

मुश्किल में है अब तो लोकपाल का बनना,

लगता नहीं की सच होगा अन्ना जी का सपना,
आंदोलन भी खत्म हुआ, जंतर मंतर पर शोर नहीं
बस बहुत हुआ अब और नहीं...

सोने की चिड़िया के हमने पंख काट दिए सारे,

कर्ज में डूबी भारत माता, कोई तो कर्ज उतारे,
कुछ हमको ही करना होगा और कोई उम्मीद नहीं,
बस बहुत हुआ अब और नहीं...

लोकतंत्र की अस्मत लुट गयी, तानाशाही हावी है,

सारे देश की राजनीति पर एक वंश ही भारी है,
ये सौ करोड़ का देश किसी के पुरखो की जागीर नहीं,
बस बहुत हुआ अब और नहीं...


इन्कलाब ही एक लक्ष्य है अब और कोई उद्देश्य नहीं,
जाग उठी है जनता सारी, मैं भी अब तो "मौन" नहीं 

बस बहुत हुआ अब और नहीं...

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी क्या

अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी  क्या जान बूझ कर जीवन ख़राब करोगी क्या? जब चले ही जाना है मुझसे दूर एक दिन फिर मेरे ख्वाबों में आकर करोगी क्या ...