Friday, December 18, 2020

माने या ना माने तू

यूँ सबको ना सुनाए जा मेरे इश्क़ के फ़साने तू
इश्क़ तुझे भी था इस बात को माने या न माने तू ।

वो एक रात तेरे इंतज़ार में कैसे कटी क्या कहूँ
काश के मिलने आ जाती किसी काम के बहाने तू।

वो हिज़्र की रात कयामत की रात बनकर गुज़री
तुझे गाड़ी में बिठाने के बाद की बात क्या जाने तू।

जो उम्मीद थी तुमसे वही तो ग़म का सबब था
"मौन" कभी फुरसत में सुनती मेरे अफ़साने तू।

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Thursday, December 17, 2020

जब तक तुम्हे कोई मुद्दा मिले तकरार के लिए।

उसकी इस सुर्खी-ए-रुख़सार के लिए
मैं एक गुलाब ले आया इज़हार के लिए।

और फिर मैंने इंतज़ार में हयात गुजार दी
उससे एक रोज नशे में किये करार के लिए।

मुफलिस को नहीं मतलब खूबी-ए-शै से
कीमत मायने रखती है खरीदार के लिए।

हमने दांव पर लगा दी सारी कमाई अपनी
उनसे अकेले चंद लम्हों की गुफ्तार के लिए।

उनसे एक डाल न काटी गयी बैसाखी बनाने को।
जिन्होंने जंगल काट दिए हथियार के लिए। 

ये सिक्कों की खनखनाहट किस काम की
तारीफ मायने रखती है फनकार के लिए ।

जुरअत-ए-ईमानी में मुफलिसी नसीब है
कभी खुशामद नही लिखी सरकार के लिए।

अपना खून पसीना बोकर अनाज उगाता है
कोई नहीं सोचता उस काश्तकार के लिए।

"मौन" इश्क़ की बातें कर लो और एक पहर
जब तक तुम्हे कोई मुद्दा मिले तकरार के लिए।

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना  पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”