Saturday, November 28, 2020

खालीपन

शाम सवेरे खालीपन है,
 सुनी रातें खलती है।
मेरे दिल की बोझल शामें, 
रोज सवेरे ढलती है।

दूर हुए हैं जबसे उनसे, 
एक विरह की ही ज्वाला,
इस दिल में भी जलती है और, 
उस दिल में भी जलती है।
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Thursday, November 26, 2020

चला आया

और फिर मैं उसे छोड़ कर वतन, चला आया,
की जैसे रूह को छोड़कर बदन, चला आया । 

उसकी खुशबू मेरे जिस्म से चली न जाए कहीं
सो मैं नहाया नहीं, ओढ़कर थकन, चला आया।

उसके खयालों से बाहर आना चाहा जब भी
एक झोंका, ले उसकी यादों का वजन, चला आया।

याद रख कर हर एक सामान साथ ले आया
पर छोड़ के सबसे अनमोल रतन, चला आया।

कहाँ वह नीम की डाली, वह पीपल की छांव
"मौन" यूँ छोड़ के आंगन का चमन, चला आया।

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना  पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”