शाम सवेरे खालीपन है,
सुनी रातें खलती है।
मेरे दिल की बोझल शामें,
रोज सवेरे ढलती है।
दूर हुए हैं जबसे उनसे,
एक विरह की ही ज्वाला,
इस दिल में भी जलती है और,
उस दिल में भी जलती है।
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
तब हर रोज़ तुम्हारे लब पे बस एक नाम हमारा था मेरा हर एक गीत प्रिये तब तुमको लगता प्यारा था । तेरी जुल्फें उड़ती उड़ती मुझसे बातें करती थी ...
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