Sunday, July 28, 2019

मौत तो तय थी...

(मेरे मोहतरम दोस्त और वरिष्ठ साथी स्वर्गीय श्री सुशील शर्मा जी, सहायक महाप्रबंधक (सिविल), FCI और कैंसर से उनके अतुलित संघर्ष को समर्पित) 


मौत तो तय थी, लोगों को जीना सिखा गया वो,

हर एक पल में एक जिंदगी, बिता गया वो |

किश्ती बढती रही, साहिल की ओर दिन-ब-दिन,

हवाओं को बहने का हुनर सिखा गया वो |

मलकुल-मौत से कह दो की इजाजत लेकर आये,

यूँ मौत को भी मिलने का सलीका सिखा गया वो |

अंग-अंग बेवफाई करता रहा बारी बारी,

अंग अंग से लड़ता रहा और जीता गया वो |

मौत आखिर मौत थी, जीत गयी एक दिन,

पर जब तक जिया, मौत से जीता किया वो | 

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

आँखे

आँखें भारी भारी रहती है  तेरी यादें तारी रहती है  उनके हाथों में फूल होते है  बाजू  में कटारी रहती है  उसकी तो फितरत है लड़ना  अपनी भी तैयारी...