Saturday, September 7, 2019

चंद्रयान-२

क्या हुआ जो चाँद पर पहुंचे नहीं
ये क्या कम है कि हम
चाँद की दहलीज जाकर
उसके दरवाजे पे अपनी
दस्तक देकर आये है |
ग्यारह वर्षों के परिश्रम
के स्वेद की चंद बूंदे
मंजिल पर गिरा कर आये है |

चाँद रिश्ते में भी है मामा हमारा 

वहां जाना पैदाइशी हक़ हमारा
आज गिरे है कल उठेंगे
फिर चलेंगे और एक दिन
कर लेंगे फतह
हम वो सतह
आज जिसके पास जाकर आये है |

चाँद पर उतरे नहीं पर 

चाँद फतह तो कर लिया
इस कदर समर्पण से तुमने
दिल फतह तो कर लिया
राष्ट्र गौरव के. सिवन तुम
रुक न जाना राह में
तुमने ऐसे कितने पंछी
मंजिल तक पहुचाये हैं |

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Sunday, July 28, 2019

मौत तो तय थी...

(मेरे मोहतरम दोस्त और वरिष्ठ साथी स्वर्गीय श्री सुशील शर्मा जी, सहायक महाप्रबंधक (सिविल), FCI और कैंसर से उनके अतुलित संघर्ष को समर्पित) 


मौत तो तय थी, लोगों को जीना सिखा गया वो,

हर एक पल में एक जिंदगी, बिता गया वो |

किश्ती बढती रही, साहिल की ओर दिन-ब-दिन,

हवाओं को बहने का हुनर सिखा गया वो |

मलकुल-मौत से कह दो की इजाजत लेकर आये,

यूँ मौत को भी मिलने का सलीका सिखा गया वो |

अंग-अंग बेवफाई करता रहा बारी बारी,

अंग अंग से लड़ता रहा और जीता गया वो |

मौत आखिर मौत थी, जीत गयी एक दिन,

पर जब तक जिया, मौत से जीता किया वो | 

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Friday, June 28, 2019

तुम कहते तो सही

लड़ तो हम खुदा से लेते, तुम कहते तो सही|
सारे जग से बैर ले लेते तुम कहते तो सही|

जग से न हारे हम, हारे तुम्हारी ख़ामोशी से 
सारा दहर जीत लेते, तुम कहते तो सही |

तुम भी कौनसे इस कदर खामोश-मिजाज थे,
हम भी पर्दा-ए-हया हटा देते, तुम कहते तो सही|

हज़ारों कोशिशें की तुमने, तर्के-वफ़ा की हमसे,
हम खुद ही चल दिए होते, तुम कहते तो सही |

लब न खोलते तुम, कुछ इशारा ही कर देते,
हम भी न “मौन” रहते, तुम कहते तो सही |


©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
28/06/2019

उसकी यादों ने मगर पीछा नहीं छोड़ा |

हाँ मान लिया की तुमने रिश्ता नहीं छोड़ा 
वो अलग बात है हमें कहीं का नहीं छोड़ा 

जिस महफ़िल में तय था, बेआबरू होना,
हमने उस महफ़िल में भी जाना नहीं छोड़ा |

वो छोड़ गया हमको, मझधार में तन्हा,
साहिल पे भी हमने जिसे तन्हा नहीं छोड़ा |

मुफलिसी में अमीरी की लत छोड़ दी लेकिन,
हमने गैरत नहीं छोड़ी कभी ईमाँ नहीं छोड़ा |

एक एक कर छोड़ गए सब, राहे-हयात में,
माँ की दुआओं ने कभी तन्हा नहीं छोड़ा |

घर, गली, कूचा, गाँव, सब छोड़ दिया लेकिन,
उसकी यादों ने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा |

बरसों हुए सूखे हुए, फूलों को किताबों में,
"मौन" फिर भी फूलों ने महकना नहीं छोड़ा |

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
07/03/2018

बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना  पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”