सता लो चाहे जितना एक लफ़्ज़ ना होठों से निकलेगा
पर मैं रोया तो मैरा आँसू तेरी आँखों से निकलेगा
वक़्त है बुलंदी का तो कुछ भलाई के काम करो
वसूली का जो पैसा है वो तो बीमारों से निकलेगा
पतवार जैसी भी हो नाविक में हिम्मत हो अगर
सफ़ीना हर हाल में बाहर तूफ़ानों से निकलेगा
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"