अंदर से नहीं बस बाहर से देखा मुझको
सब ने अपने अपने चश्में से देखा मुझको
आख़िर उम्र भर का इंतज़ार जाया न गया
उसने जनाज़े को रुकवा के देखा मुझको
तुम जा रहे थे, चले जाते, कोई ग़म ना था
तुमनें क्यूँ जाते हुए पलट के देखा मुझको
अच्छा ! वो पहली नज़र का इश्क़ नहीं था
तो फिर क्यों इतने प्यार से देखा मुझको ।
लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"