बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल हो गया अपना
पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना
लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”
आँखें भारी भारी रहती है
तेरी यादें तारी रहती है
उनके हाथों में फूल होते है
बाजू में कटारी रहती है
उसकी तो फितरत है लड़ना
अपनी भी तैयारी रहती है
उन माँ बापों की हालत पूछो
जिनकी बहुएं न्यारी रहती है
सुना है सब बेटों के घर
माँ बारी बारी रहती है
मकान वो ही घर कहलाता है
जिस घर में नारी रहती है
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
तारी : हावी रहना, तल्लीन रहना
न्यारी : अलग
एक हलकी फुलकी मजाकिया गजल
गर्मियों का उत्सव मनाएं, चलो आम खाएं
काम का प्रेशर हटायें, चलो आम खाएं
टेंशन लेने से भी कोई हल तो नहीं निकलेगा
फिर क्यूँ तनाव में आयें, चलो आम खाएं
उन लोगों को खुशिया बांटे जो दुखी हों
फिर साथ बैठकर मुस्कुराएं, चलो आम खाएं
हर समस्या का कोई न कोई हल तो निकलेगा
काटकर खाएं या आमरस बनाएँ, चलो आम खाएं
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
ये तेरी यादों के समंदर से हम बाहर कैसे निकलेंगे
अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाकर कैसे निकलेंगे
मयकदे से हम मयकश तो निकल जायेंगे यूँ ही
ये वाइज़ दुनियां से मुंह छुपाकर कैसे निकलेंगे
सुना है तेरे आशिकों का धरना है तेरी गली में
तुझसे मिलने आये तो फिर बाहर कैसे निकलेंगे
इस शहर में हर शक्श तेरा ही तो दीवाना है
तेरी खबर ना आई तो अखबार कैसे निकलेंगे
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
तेरे बगैर भी जीना, कोई मुश्किल तो नहीं
सब कुछ तो है वैसा ही, बस एक दिल तो नहीं
तू नहीं तो क्या तेरी यादें तो बसर करती है
घर चाहे खाली हो मेरा, खाली दिल तो नहीं
ख़याल तेरे सताते है मुझको भी दिन रात
माना सख्त-दिल हूँ मगर, संग-दिल तो नहीं
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल हो गया अपना पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”