उनके बिना हम कितने अकेले पड़ गए
जेसे दिल पर कईं तीर नुकीले पड़ गए
उदु के साथ वक्त ए मुलाक़ात पर
हमें देख कर वो पीले पड़ गए
बीच तकरार में अपनी जुल्फ खोलीं उसने
हमारे बगावती तेवर ढीले पड़ गए
तय वक्त पर पहुँच तो जाता मैं लेकिन
राह में सुखनवरों के कबीले पड़ गए
यूं तो पहली मोहब्बत शायरी थी मेरी
पर फिर राह में वो लब रसीले पड़ गए
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"