Tuesday, January 16, 2024

बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना 

पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना


लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन” 

Tuesday, June 13, 2023

आँखे

आँखें भारी भारी रहती है 

तेरी यादें तारी रहती है 


उनके हाथों में फूल होते है 

बाजू  में कटारी रहती है 


उसकी तो फितरत है लड़ना 

अपनी भी तैयारी रहती है 


उन माँ बापों की हालत पूछो 

जिनकी बहुएं न्यारी रहती है 


सुना है सब बेटों के घर 

माँ बारी बारी रहती है 


मकान वो ही घर कहलाता है 

जिस घर में नारी रहती है 

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

 

तारी : हावी रहना, तल्लीन रहना

न्यारी : अलग 

Thursday, June 1, 2023

चलो आम खाएं

एक हलकी फुलकी मजाकिया गजल 


र्मियों का उत्सव  मनाएं,  चलो आम खाएं 

काम का प्रेशर हटायें, चलो आम खाएं 


टेंशन लेने से भी कोई हल तो नहीं निकलेगा 

फिर क्यूँ तनाव में आयें, चलो आम खाएं 


उन लोगों को खुशिया बांटे जो दुखी हों 

फिर साथ बैठकर मुस्कुराएं, चलो आम खाएं 


हर समस्या का कोई न कोई हल तो निकलेगा 

काटकर खाएं या आमरस बनाएँ, चलो आम खाएं 

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Monday, May 29, 2023

कैसे निकलेंगे

 ये तेरी यादों के समंदर से हम बाहर कैसे निकलेंगे 

अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाकर कैसे निकलेंगे 


मयकदे से हम मयकश तो निकल जायेंगे यूँ ही 

ये वाइज़ दुनियां से मुंह छुपाकर कैसे निकलेंगे 


सुना है तेरे आशिकों का धरना है तेरी गली में 

तुझसे मिलने आये तो फिर बाहर कैसे निकलेंगे 


इस शहर में हर शक्श तेरा ही  तो दीवाना है 

तेरी खबर ना आई तो अखबार कैसे निकलेंगे 

 ©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"


तेरे बगैर भी जीना, कोई मुश्किल तो नहीं

तेरे बगैर भी जीना, कोई  मुश्किल तो नहीं 

सब कुछ तो है वैसा ही, बस एक दिल तो नहीं 


तू नहीं तो क्या तेरी यादें तो बसर करती है 

घर चाहे खाली हो मेरा, खाली दिल तो नहीं 


ख़याल तेरे सताते है मुझको भी दिन रात 

माना सख्त-दिल हूँ मगर, संग-दिल तो नहीं 

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"


Thursday, December 8, 2022

सता लो चाहे जितना एक लफ़्ज़ ना होठों से निकलेगा 

पर मैं रोया तो मैरा आँसू तेरी आँखों से निकलेगा


वक़्त है बुलंदी का तो कुछ भलाई के काम करो

वसूली का जो पैसा है वो तो बीमारों से निकलेगा 


पतवार जैसी भी हो नाविक में हिम्मत हो अगर 

सफ़ीना हर हाल में बाहर तूफ़ानों से निकलेगा 

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Sunday, October 30, 2022

तुम्हें याद दिलाना है।

कहीं मिलो किसी दिन
तुम्हें याद दिलाना है
वो वादा जो तुमने खुद किया था,
और मैनें कहा था नहीं निभा पाओगी तुम।
वो दावा जो तुमनें खुद किया था,
की जिंदगी भर दोस्त बनकर रहोगी तुम।
तुम्हें याद दिलाना है।

कहीं मिलो किसी दिन
तुम्हें याद दिलाना है
वो गर्मियों की दोपहरी का दिन जब तुम्हारी किताबें,
तुम्हें देने को घण्टों तुम्हारी बताई जगह पर खड़ा रहा मैं।
और तुम ना आई, इसलिए कि तुम्हारा काजल खो गया था,
और बिना काजल लगाए तुम मेरे सामने कैसे आती।
तुम्हें याद दिलाना है।

कहीं मिलो किसी दिन
तुम्हें याद दिलाना है
वो जब तुम गुस्से में मुंह फुला कर खामोश बेठ जाती थी,
पर तुम्हारी आंखें और होंठ बराबर लड़ते रहते थे मुझसे।
जब तुम उदास होती तो तुम्हारी सहेलियाँ फोन करती मुझे,
की संभालो इसको, आप ही के बस की बात है ये।
तुम्हें याद दिलाना है।

कहीं मिलो किसी दिन
तुम्हें याद दिलाना है
आज जब तुम किसी और के साथ बहुत खुश हो,
और बरसों तुम्हें मेरी याद नहीं आती, जो कि अच्छा ही है।
पर हर जन्मदिन पर पहला फोन तुम्हारा आएगा जिंदगी भर,
ये वादा था तुम्हारा, और मेरा भी, मुझे तो याद है।
तुम्हें याद दिलाना है।

कहीं मिलो किसी दिन
तुम्हें याद दिलाना है
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना  पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”