Tuesday, September 28, 2021

कैसे चला जाऊं इस आशियाने से

मैं इसलिए डरता हूँ कहीं जाने से
मैं पर्दा रख पाता नहीं जमाने से

खुली किताब हूँ मुझे पढ़कर लोग
बाज आते नही मुझे सताने से

मेरा चमन है मैंने इसे खून से सींचा
कैसे चला जाऊं इस आशियाने से

जरा संभल कर वो सय्याद है आखिर
बाज आएगा नहीं जाल बिछाने से

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

चलो आम खाएं

एक हलकी फुलकी मजाकिया गजल  ग र्मियों का उत्सव  मनाएं,  चलो आम खाएं  काम का प्रेशर हटायें, चलो आम खाएं  टेंशन लेने से भी कोई हल तो नहीं निकले...