मेरे घर के आंगन में
पुराने केले के पेड़ की जड़ से फूटा
एक नया अंकुर
अब बड़ा होकर
पेड़ बनने लगा है
साथ ही वह पुराना वृक्ष
किसी बुजुर्ग पिता की भांति
अपनी जगह से हटने लगा है
नवांकुर उसे अपने स्थान से हटाते हुए
उसकी जगह ले रहा है
जैसे कोई जवान बेटा
वयस्क होने पर कारोबार में
अपने पिता की कुर्सी संभाल ले
और बेटे की प्रगति के लिए
पिता खुद अपनी जगह छोड़ दे
क्योंकि खेल कोई भी हो
बेटे से हार जाने की खुशी
जीत की खुशी से कहीं ज्यादा सुख़ देती है,
एक पिता को।
-लोकेश ब्रह्मभट्ट 'मौन'