तब हर रोज़ तुम्हारे लब पे बस एक नाम हमारा था
मेरा हर एक गीत प्रिये तब तुमको लगता प्यारा था ।
तेरी जुल्फें उड़ती उड़ती मुझसे बातें करती थी
तेरी दोनों आँख का काजल मेरी आँख का तारा था ।
अब तुम जिसके दिलबर हो क्या उसके होकर भी बोलो
याद कभी वो आता है जो तुमको जान से प्यारा था ।
ख़ाली हाथ लोटता कैसे सो आज तलक नहीं लोटा
वो पगला जो तेरी खातिर तोड़ने निकला तारा था ।
ख़त और फूल तो छोड़ो मैंने फेंका नहीं आज तलक
मौन वो राह का पत्थर जिसको तुमने ठोकर मारा था |
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
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