Wednesday, February 10, 2021

मैं उससे बिछड़ कर यूँ पिघलता रहा

एक अरसे से दिल में गम पलता रहा
मैं उससे बिछड़ कर यूँ पिघलता रहा

कोई दोस्त होता तो ये हाल न होता
मैं अकेला था यहां रोज जलता रहा

जो मिरा मुदर्रिस था वही दर्स था मिरा,
वो मुझे पढ़ाता रहा मैं उसे पढ़ता रहा।

वो सच जान कर रूठ ना जाए कहीं
रोज एक नयी कहानी मैं गढ़ता रहा

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

No comments:

Post a Comment

तू मुझको पहचान गई तो

  तू मुझको पहचान गई तो  इसमें तेरी शान गई तो  ये जो अपने बीच है अब तक  सारी दुनिया जान गई तो  चाहे सारी दौलत ले लो  मर जाऊँगा जुबान गई तो  र...