एक अरसे तक वो मेरा मोहतरम रहा,
जुदा होकर भी उसके होने का भरम रहा
मैं उस दिन पहली बार माँ से झूठ बोला
कईं महीनों तक मेरे दिल में ये गम रहा।
मिरे हर शेर ने कितने दुश्मन बनाये मिरे
पर कलम में यही असनाफ़े-सुख़न रहा।
असनाफ़े-सुख़न = लेखन शैली
मुझे लगता था की मेरे सपने भी तुम्हारे होंगे और जी जान से तुम मेरे सपने पूरे करने में अपनी ज़िन्दगी बिता दोगे । पर ऐसा होता नहीं, होना ...
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