Saturday, April 26, 2025

सपने

मुझे लगता था 

की मेरे सपने भी तुम्हारे होंगे 

और जी जान से तुम 

मेरे सपने पूरे करने में 

अपनी ज़िन्दगी बिता दोगे । 

पर ऐसा होता नहीं, 

होना लाज़मी भी नहीं,

सपने तो अपने ही होते हैं 

और उनको पूरा करने का दारौमदार 

ख़ुद के ही काँधों पर होता है ।

                © लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

नामौजूदगी

तुम्हारी नामौजूदगी 

तुम्हारे होने की क़ीमत याद दिलाती है मुझे 

मैं वो दीया हूँ 

जो बिना बाती के रोशन हुआ चाहता है । 

पर उसको याद नहीं 

की वो बिनाई दीये की नहीं 

वो तो बाती और तेल की बदौलत 

रोशन होती है । 

ग़लतफ़हमी फिर ग़लतफ़हमी ही है 

चाहे वो कितनी भी ख़ुशफ़हमी के रूप में आए । 

बेहतर है समय रहते 

एहसास हो जाए हकीकत का 

और क़ीमत समझ लूँ मैं तुम्हारी ।

            © लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Sunday, August 25, 2024

उनके बिना हम कितने अकेले पड़ गए

जेसे दिल पर कईं तीर नुकीले पड़ गए


उदु के साथ वक्त ए मुलाक़ात पर

हमें देख कर वो पीले पड़ गए


बीच तकरार में अपनी जुल्फ खोलीं उसने 

हमारे बगावती तेवर ढीले पड़ गए


तय वक्त पर पहुँच तो जाता मैं लेकिन

राह में सुखनवरों के कबीले पड़ गए 


यूं तो पहली मोहब्बत शायरी थी मेरी

पर फिर राह में वो लब रसीले पड़ गए

                © लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Sunday, May 19, 2024

अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी क्या

अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी क्या

जान बूझ कर जीवन ख़राब करोगी क्या?


जब चले ही जाना है मुझसे दूर एक दिन

फिर मेरे ख्वाबों में आकर करोगी क्या ?


मैं तो तुमको रात दिन प्यार कर सकता हूँ

पर तुम इतने प्यार का आख़िर करोगी क्या ?


तूम वो नशा हो जिसे देख कर झूमते हैं लोग

“मौन” तुम आख़िर शराब पीकर करोगी क्या ?

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

Tuesday, January 16, 2024

बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना 

पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना


© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन" 

Tuesday, June 13, 2023

आँखे

आँखें भारी भारी रहती है 

तेरी यादें तारी रहती है 


उनके हाथों में फूल होते है 

बाजू  में कटारी रहती है 


उसकी तो फितरत है लड़ना 

अपनी भी तैयारी रहती है 


उन माँ बापों की हालत पूछो 

जिनकी बहुएं न्यारी रहती है 


सुना है सब बेटों के घर 

माँ बारी बारी रहती है 


मकान वो ही घर कहलाता है 

जिस घर में नारी रहती है 

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

 

तारी : हावी रहना, तल्लीन रहना

न्यारी : अलग 

Thursday, June 1, 2023

चलो आम खाएं

एक हलकी फुलकी मजाकिया गजल 


र्मियों का उत्सव  मनाएं,  चलो आम खाएं 

काम का प्रेशर हटायें, चलो आम खाएं 


टेंशन लेने से भी कोई हल तो नहीं निकलेगा 

फिर क्यूँ तनाव में आयें, चलो आम खाएं 


उन लोगों को खुशिया बांटे जो दुखी हों 

फिर साथ बैठकर मुस्कुराएं, चलो आम खाएं 


हर समस्या का कोई न कोई हल तो निकलेगा 

काटकर खाएं या आमरस बनाएँ, चलो आम खाएं 

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

सपने

मुझे लगता था  की मेरे सपने भी तुम्हारे होंगे  और जी जान से तुम  मेरे सपने पूरे करने में  अपनी ज़िन्दगी बिता दोगे ।  पर ऐसा होता नहीं,  होना ...