मैं जब भी घर देर से लोटा, 'माँ' को मुन्तज़िर देखा |
-लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
मुंतज़िर: प्रतीक्षारत
एक हलकी फुलकी मजाकिया गजल ग र्मियों का उत्सव मनाएं, चलो आम खाएं काम का प्रेशर हटायें, चलो आम खाएं टेंशन लेने से भी कोई हल तो नहीं निकले...
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