Thursday, July 7, 2016

बहुत याद आता है

आँखें बंद करते ही वो सपना  याद आता है 
मुझे गाँव का वो गुजरा ज़माना याद आता है 

शहर की ये चमक दमक अच्छी नहीं लगती
हमें गाँव का कच्चा घर-अंगना याद आता है ।

यहाँ पड़ोसी को पड़ोसी पहचानता तक नहीं 

सारा गाँव एक परिवार था कितना याद आता है ।

पड़ौसियों को पार्किंग के लिए झगड़ते देखा तो
हमें बाबा का दो बीघे का अहाता याद आता है।

किसी बुज़ुर्ग की बेवक्त मौत की ख़बर सुनते ही

सारे गाँव का वो खाना न खाना याद आता है ।

बिना तेल के ये कमबख़्त कारें भी नहीं चलती 

हमें वो बैलगाड़ी के पीछे लटकना याद आता है ।

सब्ज़ी मंडी में फलों का मौलभाव करते करते

हमें वो आम-औ-जामुन का बग़ीचा याद आता है ।

वो यादें इस ज़ेहन से कभी मिट ही नहीं सकती

जितना भूलना चाहूँ "मौन" उतना याद आता है ।

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन" 

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बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना  पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”