Monday, May 29, 2023

कैसे निकलेंगे

 ये तेरी यादों के समंदर से हम बाहर कैसे निकलेंगे 

अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाकर कैसे निकलेंगे 


मयकदे से हम मयकश तो निकल जायेंगे यूँ ही 

ये वाइज़ दुनियां से मुंह छुपाकर कैसे निकलेंगे 


सुना है तेरे आशिकों का धरना है तेरी गली में 

तुझसे मिलने आये तो फिर बाहर कैसे निकलेंगे 


इस शहर में हर शक्श तेरा ही  तो दीवाना है 

तेरी खबर ना आई तो अखबार कैसे निकलेंगे 

 ©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"


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