Saturday, November 27, 2021

जीत हार

सवाल जीत या हार का तो था ही नही
हमें दरअसल उलझना था ही नहीं। 

किसी का दिल दुखाकर खुशी पाऊं
ये मिज़ाज कभी अपना रहा ही नहीं।

हम खुद ही न समझ पाए कि हम
वो बन गए जो कभी चाहा ही नहीं।

जरा सी बात पर भिड़ जाने का शौक
जब था तो बहुत था, अब रहा ही नहीं

उसके आंसू मेरी आँखों से क्यूँ ना बहते
इतना पत्थर तो ये कलेजा था ही नहीं

©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

No comments:

Post a Comment

दिसम्बर

तुझसे जुदाई, तेरी याद और दिसम्बर  एक तो इतने बुरे हालात और दिसम्बर  याद बहुत आते है वो साथ बिताए पल तेरे इश्क़ में डूबी रात और दिसम्बर  ये इ...