Friday, January 17, 2020

शायद

वो शक्श चाहता भी यही था शायद
हमारा बिछड़ना भी सही था शायद।

उसकी आँखों ने बहुत रोका मुझको
मैं दिल से चाहता भी यही था शायद।

यूँ तो सहरा में हरियाली नहीं दिखती
वो सहरा सहरा ही नहीं था शायद।

हिज़्र कोई शोक नहीं था मजबूरी थी
ये कोई इरादतन तो नहीं था शायद।

माना उस कॉफी का कर्ज न अदा हुआ
दरअसल ये मुमकिन ही नहीं था शायद।

वो इख्लास, खुलूस, इफ्फत और इज्तिरार
"मौन" तू उसके लायक ही नहीं था शायद।

© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"

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बस इतनी सी बात जान के जीवन सफल  हो गया अपना  पिताजी माँ से कह रहे थे ये लड़का ठीक निकल गया अपना लोकेश ब्रह्मभट्ट “मौन”