मैं जब भी घर देर से लोटा, 'माँ' को मुन्तज़िर देखा |
-लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
मुंतज़िर: प्रतीक्षारत
नजरिया, वक्त, हालात, दौर, कुछ नहीं बदला तेरी ज़रूरत बदल गई और कुछ नहीं बदला परिवर्तन प्रकृति का नियम है, झूठ कहते हैं वो आज भी है दिलों क...