ये जो सारे ख़त-ए-इज़हार रखे है तुमने
मेरे जैसे कितने उम्मीदवार रखे है तुमने
ये मुस्कान ये काजल ये खुले बाल
क़त्ल के कितने हथियार रखे है तुमने
दो नावों पर सवार हो तो फिर भी ठीक
एक नाव पर कितने सवार रखे है तुमने
इश्क़ में एक-दो आशिक़ मरना आम बात है
पूरे पूरे क़बीले मार रखे है तुमने ।
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"